कमर तोड़ता करधन
कुण्डलिया [ करधन ]
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करधन में कमर कसके , करम किये निजाम ।
चिंतित है अम्मा चूल्हा , चकित खास ए आम।।
चकित खास ए आम , दुःख में ढल रही उमर ।
फ़ाका लाई शाम , रात में तात गये मर।।
हाय गज़ब का शोर , चाहुं ओर मचा मरदन।
दगा झूठ का जोर , कमर तोड़ता करधन ।।
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[ मिले न कहीं उधार ]
आमद से खर्चा भारी , घर बैठे बेकार ।
बिना काम कब तक चले , मिले न कहीं उधार।।
मिले न कहीं उधार , नौकरी छूटी जब से ।
आफत बरसी रेन , दुर्दिन पग धरे तब से।।
बोलत दो के चार , आंखें बंद है शायद ।
दाम चढ़े मीनार , किरोना तेरी आमद ।।
स्वरचित –
शेख जाफर खान