मिमियाने की आवाज
कहानी- मिमियाने की आवाज
जीवन का मूल्य अनंत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है। उसी तरह सभी जीवों को अपनी जान प्यारी होती है। हमें अपने दिल से पराए दिल का हाल जानने की कोशिश करना चाहिए।
कुछ दिनों से घर के पिछवाड़े से पूरे दिन बकरों के मिमियाने की आवाजें आती रहती थी। ऐसा लगता था मानो वे रो रहें हैं। उनका जोर-जोर से मिमियाना मेरे लेखन में बाधा डाल रहा था।
कुछ दिन तो सहन किया,फिर जब रहा ना गया तो एक दिन पिछवाड़े की दीवार से झांक कर देखा,तो दो बहुत बड़े और मोटे बकरे चिल्ला
रहे थे। मेरे घर के पीछे आदि वासियों की बस्ती है। पीछे की पूरी माटी तिलेश्वर माझी की है। उसका लड़का वहीं बकरों के आसपास घूम रहा था।
मैंने उससे पूछा- बकरों का क्या करोगे ?
तो वह बड़ी खुशी से बोला- इसी सात मई को हमारी बहन की शादी है। तब इनको काटा जाएगा और चार दिन रह गए हैं। आपका निमंत्रण भी है।
काटने का नाम सुनते ही मैं अंदर तक हिल गई। मैं ठहरी शाकाहारी जीव-जंतुओं से प्रेम करने वाली। मेरी चौखट पर सुबह से गाय, कुत्ता, बिल्ली, बकरी सब रोटी के लिए आ जाते हैं। नन्ही गौरैया और मैना तो अलसुबह ही खिड़की से चिचिया कर दाना मांगने लगती हैं।
ऐसे में बकरे का रोना मेरी समझ में आ गया था। वे रो-रो कर अपने प्राणों की गुहार लगा रहा था। उसे एहसास हो गया था कि अब उसके जीवन के कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। वे शायद प्रभु से प्रार्थना कर रहा था कि अगले जन्म में मुझे बकरा मत बनाना क्योंकि पहले तो लोग हमें अच्छा-अच्छा भोजन कराकर हमें मोटा करते हैं और फिर हमको ही काटकर जश्न मनाते हुए खा जाते हैं। हमारी तो मृत्यु की तिथि भी मनुष्य अपने हाथों से निश्चित कर लेता है।
मैं गहन विचारों में डूबी उस बेजुबान पशु के विषय में सोच ही रही थी कि तिलेश्वर का लड़का दोनों पशुओं को रस्सी से पकड़ कर अपने घर की तरफ ले जाने के लिए आगे बड़ा। उसका एक मित्र भी उसके साथ था। दोनों हम उम्र थे। यही कोई बीस साल के आस- पास के होंगे।
उसका मित्र कहने लगा, हम तो इनको काटकर इस जीवन से मुक्त कर देते हैं।
मैंने उससे कहा- यदि संसार के बंधनों से मुक्त कराने का तर्क सही है तो फिर किसी आततायी द्वारा नरसंहार को भी आप सही मानेंगे। वह भी तर्क दे सकता है कि वह तो लोगों को कष्टदायक जीवन से मुक्ति दिला रहा है।
हर जीव अंतिम समय तक प्राण बचाने के लिए संघर्ष करता है। जब असहाय हो जाता है तब उसे प्राण गंवाने पड़ते हैं। जिन जीवों को हम मार रहे हैं, उन्हें तो प्राण रक्षा के संघर्ष का अवसर तक नहीं दिया जाता है। बर्बरता सिर्फ वहीं नहीं है, जहां मानव का रक्त बहता है। बर्बरता उन सभी कार्यो में होती है, जहां-जहां रक्त बहता है।
ऐसा कहा जाता है कि अंतिम सांसे गिन रहे जीव से आशीर्वाद लिया जाता है। कहते हैं उस समय वह देवत्व के निकट होता है। जिस जीव को खाने के लिए मार रहे होते हैं। वह अंतिम समय में क्या कहकर…जायेगा। कहीं अंजाने में कोई पाप तो नहीं हो रहा है।
खैर छोड़िए…जो भी हो। हम कौन होते हैं किसी पर अपनी बात थोपने वाले…हमें तो संत कबीर का दोहा याद आ गया।
बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल।
जो नर बकरी खात है, तिनको कौन हवाल।।
डॉ.निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया ,असम