मिथिला राज्य बनाम राजनीतिक दल।
मिथिला राज्य बनाम राजनीतिक दल।
-आचार्य रामानंद मंडल।
मिथिला आ बिहार दूटा संस्कृति के परिणाम हय। मिथिला सनातन संस्कृति के त बिहार बौद्ध संस्कृति के परिचय कराबैत हय। पहिले बंगाल से बिहार। पुनः बिहार से उड़िसा आ फेर बिहार से झारखंड अलग राज्य निर्माण भेल।आब मिथिला राज्य के निर्माण के बात हो रहल हय। आजादी के बाद मिथिला राज्य पुनर्गठन के बात भेल परंच तत्कालीन केंद्रीय सरकार बात न मानलन। पहिले मैथिली के हिंदी के बोली मानल जाइत रहय आ मैथिली महाकवि विद्यापति हिंदी के पोथी में विराजमान रहय आ आइओ हय।बाद मे एन केन प्रकारेण मैथिली संविधान के अष्टम सूची मे शामिल भेल। आब मिथिला राज्य पुनर्गठन के जोर पकड़ले हय। परंतु इ चाह के प्याली में चाह के उफान जैसन लगय हय। कारण केवल मिथिला -मैथिली संगठन अपन सांस्कृतिक कार्यक्रम मे डीजे बजबैत छतन।आम मिथिलावासी के अइसे कोनो मतलब न हय।सभ मिथिला -मैथिली संगठन भूराबाल खास क के बाभन आ कर्ण कायस्थ से भरल हय। अइमे सोलकन के प्रतिनिधित्व न के बराबर हय।हय सेहो भूराबाल के गुलाम जैइसन हय।
हाल मे राजद के बिधान परिषद के विरोधी दल के नेता आ राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के पत्नी आ पूर्व मुख्यमंत्री रावरी देवी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिथिला राज्य के मांग कैलन हय।अइ पर अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के संस्थापक अध्यक्ष धनाकर ठाकुर राबरी देवी के मांग के समर्थन करैत टोंट कैलन हय कि इ मैथिल वोट के राजनीतिक दबाव के चलते कैलन हय।कि आबि मिथिला राज्य के कोनो राजनीतिक दल उपेक्षा न कर सकैत हय। लालू यादव पहिले झारखंड राज्य निर्माण के विरोध कैलन कि झारखंड हमर लाश पर बनत बाद में झारखंड राज्य निर्माण के समर्थन कैलन आ झारखंड राज्य बनल। जनेउ आ मैथिली के विरोध कैलन। मैथिली के बीपीएससी में खतम कैलन। भूराबाल के चर्चा कैलन।अइ संदर्भ में विचारणीय हय कि जनेऊ के विरोध त लोकनायक जयप्रकाश नारायण सेहो कैलन आ जनेऊ तोड़ो अभियान चलैलन । आइयो केते बाभन जनेउ तोड़ले हतन आ जनेउ न पहिनैत हतन। मैथिली के हटाबे के कारण रहय कि बीपीएससी के रीजल्ट मे मैथिली विषयधारी के अधिकता भे गेल आ मैथिली संशय मे आ गेल। स्वाभाविक रूप से मिथिली के बीपीएससी से निष्कासित कैल गेल। वर्तमान में मुख्यमंत्री नितीश कुमार मैथिली के केवल क्वालिफाईग बिषय बना देलन।एकर अंक जोडल न जाइ हय। मैथिली प्रिय लोग एकर विरोध करैत हतन।परंच पारदर्शिता के लेल इ उचित निर्णय हय।
आबि जेना मिथिला में संपूर्ण जाति के दू भाग में बांटल जाइत हय यथा -बाभन आ सोलकन। परंतु इ सम्पूर्ण मिथिला जाति के न दर्शाबैत हय। अइमे राजपूत, भूमिहार आ कायस्थ छूट जाइ हय। जौं एकरा फारवर्ड कहल जाय आ सोलकन के बैकवर्ड कहल जाय त इ समुचित हय।परंच मैथिल के संवैधानिक शब्द से घृणा होइ हय। जौं बाभन यानी भूमिहार, राजपूत,बाभन आ लाला (कायथ) के भूराबाल कहल जाय त इ समुचित हय।इ त फारवर्ड के विकल्प भूराबाल हय। जौं बैकबार्ड के सोलकन कहल जा सकैय हय त फारवर्ड के भूराबाल केला न कहल जा सकैय हय इ त संक्षेपाक्षर हय। अइमे बुरा बात त न हय। मैथिली के साइक्लोपिडिया वर्णरत्नाकर में सोलकन शब्द न मिलैत हय।अंत मे मिथिला राज्य पुनर्गठन पर जौ राजनीतिक दल एलर्ट भेल हय त मिथिलावासी के सेहो एलर्ट हो जाय के चाही कि मिथिला राज्य त बनत त हमर उपस्थित केना रहत। कहीं इंडिया इज रीच बट इंडियन्स आर पुअर बनके न रह जाए।
-आचार्य रामानंद मंडल सीतामढ़ी।