मित्र
बुरे वक्त में ही दिखे, सबके असली रंग।
केवल सच्चा मित्र ही, रह जाते हैं संग।।
टाँग खींचती दोस्ती, कुछ मीठी नमकीन।
केवल खुशियाँ बाँटते, गम लेते हैं छीन।।
राह दिखाये जो सही, गलती पर दे डाँट।
वो ही सच्चा मित्र हैं, जो लेता दुख बाँट।।
कृष्ण सुदामा ने दिया, जग को यह संदेश।
ऊँच नीच से हो परे, सदा मित्र परिवेश।।
पति पत्नी जब मित्र हों, करते खूब कमाल।
गाड़ी पटरी पर चले, जीवन हो खुशहाल।।
रहें संग जब मित्रवत, हृदय भरी हो प्रीत।
जीवन की हर दौड़ में, बाजी जाते जीत।।
कृष्ण-सुदामा की तरह, मिले कहाँ अब मित्र।
स्वार्थ लिप्त होने लगा, सबका यहाँ चरित्र।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली