मित्र के प्रति : मुक्तक
कवि मित्र डॉ० मनोज दीक्षित के प्रति….
प्यारे भ्राता पिंगल ज्ञाता कोमल कविता साधक हो.
उड़ते मुक्त जहाँ चंचल मन उन राहों में बाधक हो.
मित्र नमन उस पावनता को हृदय तुम्हारे जो बसती,
हँस-हँस कर शुचि छंद रचाते शारद के आराधक हो..
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’