********मिट्टी की खुश्बू******
********मिट्टी की खुश्बू******
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मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है,
याद आए तो पल पल रुलाती हैं।
छोड़ कर जब से मिट्टी अलग हुए,
अकेलेपन की अग्नि में सुलग गए,
धीरे धीरे धुंए से लपटें सुलगाती है।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
शहरी चकाचौंध का रंग चढ़ गया,
रिश्ता मिट्टी का मिट्टी से हट गया,
कुछ भी कहने से जुबां शर्माती है।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
पनघट पर पानी से भरी गागरिया,
आस पास टहलती भेड़ें बकरियां,
गौरी हया का घूंघट सरकाती है।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
वो किश्तियां चलाना बरसातों में,
मजा आता था यारों की बातों में,
बरगद की घनी छांव इठलाती है।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
याद आता है वो सा ऊंचा चबूतरा,
ऊंच नीच का पापड़ा चढ़ा उतरा,
दादी अम्मा मीठी चूरी खिलाती है।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
घर कच्चे दिल पक्के थे मनसीरत,
वहीं मक्का मदीना सभी थे तीरथ,
आंखों अश्रुगंगा झड़ी ब हाती हैं।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
मिट्टी की खुश्बू वापिस बुलाती है।
याद आए तो पल पल रुलाती है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)