मिटेगी नहीं
गीतिका
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ये दूरियां क्या मिटेगी नहीं।
दुनिया नयी क्या बसेगी नहीं।
सच्चे हृदय में मुहब्बत लिए।
क्यों आस मन में जगेगी नहीं।
जब फूल खिलने लगेंगे बहुत।
क्या डालियां फिर झुकेंगी नहीं।
जब धूप खिलती रहेगी सहज।
क्यों धुंध भी यह छटेगी नहीं।
शुभ भोर होगी उजाला लिए।
घड़ियां तमस की बचेगी नहीं।
मुश्किल यही है सताती हमें।
क्या प्यास मन की बुझेगी नहीं।
करती प्रतीक्षा हमेशा रही।
क्यों आज पलकें बिछेगी नहीं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/०८/२०२४