मिटते गांव
ताल तलैया, कुवां बोदर, ढेंकुल बेड़ी कहां गयिल।
भेली भुजा, चना नहारी, कहा गजोधर कहां गयिल।।
लोहिया देशी हल हेंगा जोठा बात रही सब बचपन का।
एक्का डल्लफ लढिया डोली हो गयिल बात पुरातन का।।
पतई, महुवा, बाल बीनना लगता है इतिहास हो गया।
घुघुरी लाटा खरदर लप्सी सबका सत्यानाश हो गया।।
पेड़ के नीचे खाट बिछा के बस बात छांटना बात काटना।
कोट पीस या दहला पकड़ हो मस्ती में था ताश बांटना।।
महरा को बाबा कहते और नौआ चाचा कहलाता था।
कर्म भाव से सभी जुड़े सबसे सबका अच्छा नाता था।।
थे अभाव में पर स्वभाव से निश्छल निष्ठावान गांव था।
लोकतंत्र जब नहीं था “संजय” रामराज्य तब गांव गांव था।।
जय हिंद