माफ़ीनामा
जो हुई ख़ता मुझसे
वो मान लिया मैंने,
एक तुम ही तो अपने हो
पहचान लिया मैंने,
कुर्बा हो जाऊंगा
यदि तुम मुझसे रूठोगे…
हृदय को तुम्हारे लिए
गुलदान किया मैंने..!१!
मत सोच कभी भी तू,
कि गुमान किया मैंने
तेरी खुशियों में खुशियां है
ये जुबान दिया मैंने,
मेरी रातें तेरी यादें है
मेरा दिन तेरी बातें है …
तुझे ईश्वर से बढ़कर भी
हाँ, स्थान दिया मैंने..!२!
हाँ जानता हूँ तुझको
परेशान किया मैंने,
खुद ही खुदको तुझसे
अनजान किया मैंने,
हम मर ही जायेंगे
जो तेरे आंसू छलकेंगे ..
दो दूरस्थ बिंदु का फिर से
मिलान किया मैंने..!३!
उन बातों और वादों पर
रुझान किया मैंने,
मैं उलझा था भंवरों में
अनुमान किया मैंने,
अब माफ भी कर दो तुम
या जो चाहे सजा दे दो..
अब भूल नही होगी मुझसे
ये ठान लिया मैंने ..!४!
जो ख़ता हुई वो मान लिया मैंने …
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लेखक- कवि राहुल पाल
पूर्णतया स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित