मार मुदई के रे… 2
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
सुबह शाम चाहे दोपहर में धूप के ना तनिको दर्शन बाऽ
सारी दिन सारी रात शबनम के बर्शन बाऽ
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
नया साल के नाम पर बचपन से पचपन ले नहाईल लो
पहेन के कपड़ा लता कम्बल रजाई में लुकाईल लो
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
मानव पशु पक्षी जीव जन्तु सबे लुकाईल बाऽ
पेड़ पौधा फल फुलवारी सबे संकुचाईल बाऽ
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
मौसम में बदलाव नाहीं समय में बदलाव बाऽ
गाँव शहर के घर घर में जरत अलाव बाऽ
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
प्रकृति में कवनो अंतर दिखाई नाहीं देत बाऽ
नया फसल कटे में दु महीना लेट बाऽ
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
कोयल के कुहुक नाहीं चिड़ियन के चाहचाहाहट बाऽ
जीवन के भेश भूषा में नाहीं कवनो बदलाहट बाऽ
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
दिन में कही सूरज ना दिखे रात में कही ना चाॅंद
कुहासा के मारे नदी नाला सब बुझाए बाॅंध
मार मुदई के रे ई कईसन नया साल बाऽ
ठंड से ठिठुर के सारा लोग बेहाल बाऽ
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कवि : जय लगन कुमार हैप्पी