मायापति की माया!
चोरों ने रखा हुआ, चोर को चौकीदार।
पाखंडी धनपशु हुए, धर्म के पहरेदार।।
शेर हुए नेता सभी, बन गया सब जंगल राज।
खुद में खुद को ढूंढता, ये मानव राज समाज।।
कोई कुछ कहीं बोलता, रहा न स्थान का मान।
व्यभिचारी पापी हैं ढूंढते, जनहित में सम्मान।।
दो पाटों में बंट रहा, मानव की यह जाति।
एक दाता एक दीन,अलग है इनकी पांति।।
मायापति ही जानते, क्या माया का खेल।
ब्याही सो घर मूसरी, मलकिन बनी रखैल।।
हे प्रभु आप प्रसन्न हो, हो रही जै जयकार।
माया को ही दे दिया, कलयुग की पतवार।।
जय श्री राम