माना सब कुछ
मान लो सब कुछ
इक भ्रम मात्र हो
मैं तुम्हारे साथ
मगर तुम मेरे
ना हो सके हो
पल -छिन को भी
ये ख्याल
मुझे झकझोर -सा
जाता है
बेचैनी /घबराहट /व्याकुलता
सारे शब्द
बौने पड़ जाते है
फिर भी
जीवन तो है
अनरवत चलता रहता है
अपनी निर्धारित
गति सीमा से ||||
तुम्हें दोष देकर
अपमानित कर
खुद के ही
प्रेम पर
प्रश्नचिन्ह लगाकर
आखिर पा भी क्या सकेंगे ?
~🩵