माना ये हमें बात को कहना नही आया
माना कि हमें बात को कहना नही आया
तुमको भी इशारों को समझना नहीं आया
तुम भी तो हमें छोड़ के जा पाए न अब तक
हमको भी तम्हारे बिना चलना नहीं आया
समझाया डराया इसे दी धमकियाँ कितनी
आँसू को मगर आँख में रुकना नहीं आया
सुनते रहे चुपचाप कहा कुछ नहीं हमने
हम क्या करें अपनों से जो लड़ना नहीं आया
नुकसान उठाने पड़े चाहे हमें अक्सर
वादों से मगर हमको मुकरना नहीं आया
थे दोस्त कभी बन गये दुश्मन वो हमारे
पर काम गलत हमको है करना नहीं आया
ये सर है झुका जब भी तो सम्मान में सबके
डर कर है कभी अर्चना’ झुकना नहीं आया
18-07-2022
डॉ अर्चना गुप्ता