मानसून
आयी बरसा।
उदास किसान का ।
मन हरषा ।।
आग का गोला ।
देता है ये जीवन ।
दहके शोला ।।
कुछ हो कम।
सूरज की तपन ।
धरा हो नम ।।
बढ़ती गर्मी ।
कैसी सूरज की है ।
ये हठधर्मी ।।
चढ़ा है पारा ।
जून की तपन का ।
कोई न चारा ।।
आरती लोहनी
आयी बरसा।
उदास किसान का ।
मन हरषा ।।
आग का गोला ।
देता है ये जीवन ।
दहके शोला ।।
कुछ हो कम।
सूरज की तपन ।
धरा हो नम ।।
बढ़ती गर्मी ।
कैसी सूरज की है ।
ये हठधर्मी ।।
चढ़ा है पारा ।
जून की तपन का ।
कोई न चारा ।।
आरती लोहनी