मानव
मानव कहलाये मगर, भूले मानव धर्म।
दुर्लभ मानव देह से, किया नहीं शुभ कर्म।।१
पत्थर भी रोने लगा, देखा मानव हाल।
इक-दूजे को डस रहा, खुद ही बनकर काल।। २
पनप रहा है हर तरफ, नफरत का बाजार।
मानव लालच में पड़ा, करता हद को पार।। ३
जीवन में धारण करें, मानवता का मूल।
साहस,संयम,धर्म को, मानव कभी न भूल।। ४
कलयुग में सबसे बड़ा, है मानव का कर्म।
करेकर्म किस्मत बने, यह जीवन का मर्म।।५
-लक्ष्मी सिंह