मानव तन
मानव तन
मानव तन पाकर साथी
हार कभी मत जाना पथ में।
कितने पुन्य सफल होते हैं
तब जाकर मानव तन मिलता।
सुन्दर-सुन्दर आशाएं सुरभित
सपनों का गुलशन है खिलता।
इस सुन्दर-से उपवन में मानव
नैराश्य भावना कभी न लाना।
मानवता निशि दिन विकसित
सत्य भाव बस तुम उपजाना।
साहस अतुलित लिए हृदय में
इससे ही है हर दुश्मन हिलता।
मन जीता तो मंजिल हासिल
नहीं कभी मुश्किल से डरना।
जीवन बाधाएं हट जाती हैं
डग तुम बस साहस से धरना।
सुन्दर-सुन्दर आशाएं सुरभित
सपनों का गुलशन है खिलता।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली