मानव जाति के लिए एक संदेश
।। ‘ कल’- ‘आज’ और ‘कल’ ।।
‘कल’ जो बीत गया वह “अतीत” सृष्टि के कालचक्र का एक अध्याय था। ‘कल’ के सुंदर- सुखद पल ,
संघर्षमय पल, दुःखद पल , कलुषित-कठोर पल,
सभी का मिश्रित फल क्या आज नहीं ?
“सृष्टि “की एक अनमोल रचना मानव है ,
मां ‘प्रकृति’ ने सूर्य ,पृथ्वी ,वायु, जल ,वनस्पति की क्रियाशीलता को “मानव”में रचकर मनुष्य को पांच तत्वों से परिपूर्ण बनाया है।
मनुष्य ही पृथ्वी का एकमात्र प्राणी है जो मां ‘प्रकृति’ के नियमों पर चलते हुए पृथ्वी के अन्य जीवो एवं वनस्पति का संरक्षण कर सकता है।
“मानव” द्वारा ही प्रकृति के नियमों के उल्लंघन के परिणाम स्वरूप ‘अतीत’ की कोख से जन्मा ‘वर्तमान’ है , यह ‘आज’ एक विद्रूप रूप लिए संसार के सामने खड़ा है।
वर्तमान युग में भूमंडल का बढ़ता तापमान , अनायास भूस्खलन , अनिश्चित महाप्रलय , निरंतर वनों की आग, समुद्री कंपन से महाविनाश, मौसम परिवर्तन, वन और जल प्राणियों की असुरक्षा आदि विभिन्न विनाश लीलाओं के स्वरूप हैं।
मां प्रकृति के वरदानों की उपेक्षा- अनादर, मानवीय मूल्यों की हत्या, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन ,
मनुष्य की स्वार्थी होने के ठोस और कुरूप प्रमाण हैं। मनुष्य केवल अपनी स्वार्थ -पूर्ति और लालच में अंधा बना स्वयं में निहित प्राकृतिक तत्वों की शक्ति को भूल गया है।
इस तरह वह अपने अनमोल ‘मानव जीवन’ का प्रकृति के विरुद्ध अनियमित संचालन करता रहा।
मनुष्य स्वयं को मां ‘प्रकृति’ से अधिक सक्षम और शक्तिशाली मानकर धरती मां पर अनेकों अत्याचार करता रहा।
आज के मनुष्य को अपने अहंकार के अंधेपन को हटाकर आने वाले कल के लिए नियमित कर्मों की आवश्यकता है , जो उसका भविष्य बन पाएगा।
आज का मनुष्य अपनी अतीत की भूलों को मानकर मां ‘प्रकृति’ के नियमों के अनुसार कर्मों द्वारा अपना भला व धरती मां के प्रति अपना कर्तव्य निभा सकता है।
केवल स्वयं की इच्छा को ही सर्वोपरि रखकर जीवन जीना मानवीय गुण नहीं है, बल्कि उत्तम भविष्य के लिए मां ‘प्रकृति’ के नियमों के अनुसार ही अपने कर्तव्यों को निभाना सही मानव धर्म होगा, जो सुंदर और सकारात्मक भविष्य को जन्म देगा।
मानवीय मूल्य, मानव धर्म, मानवीय भावना एवं मानवाधिकारों की रक्षा को ही सर्वोपरि रखकर कर्म द्वारा धरती मां को उपहार दिया जा सकेगा।
अहंकार , असहयोग , उपेक्षा , पक्षपात, अनियमित कर्म, प्राकृतिक जिम्मेदारियों से पलायन, झूठ का बोलबाला आज के युग में सामान्य बातें हो चुकीं हैं , इतना ही नहीं इनको तथाकथित व्यक्तिगत आजादी और आधुनिकता की परिभाषा बना दी गई है ।
‘प्रकृति’ के प्रति ‘अन्याय’ ‘सत्य’ का अभाव , सरासर नैतिकता को झुठलाना अपने आप में मानव जीवन के प्रति ही अनादर है।