मानव के सूने मानस में तुम सरस सरोवर बन जाओ,
मानव के सूने मानस में तुम सरस सरोवर बन जाओ,
उर की कठोरता के थल में तुम पंकज बनकर खिल जाओ,
अंबे अपनी सुरसरिता से कुछ बूंदे मुझको दे जाओ,
जिससे निज स्वर मैं खो न सकूं वह कृपा मुझे तुम दे जाओ,
अनामिका तिवारी’ अन्नपूर्णा ‘✍️✍️