मानवी हृदय
एक औरत ही क्यों अपना सबकुछ छोड़कर आएं ससुराल अपने पति के पास छोड़ो तों दोनों छोड़ें,कुछ दिन दोनों, दोनों के घरों में रहें,बाकि अपने आशियाने माँ-बाप को साथ रखें।
वो आशियाना या घर जो बनते हैं, मानव -मानवी के बर्ताव विश्वास, प्यार से उसे संभाले।
घर की जरूरत औरत 😍मर्द ❤️बच्चे ,बूढ़े ,अकेले सभी को हैं। मैं बात घर की कर रही हूं जिसमें या जिससे इंसानियत पैदा होती है जिसे प्रेम कहते हैं। अहंकार में तो हमेशा हैवानियत को ही पैदा किया है और बेचैनी को, जो सिर्फ मिट्टी, ईट, पत्थर, सीमेंट ,टाइल्स के जोड़ों से बने मकान से है। सिर्फ घर और इनके हिस्से के दावेदार बनकर रह जाते हैं।
मैं ये नहीं कहती कि औरत की बनाई दुनियां बड़ी खूबसूरत होगी पर ये दुनियां औरत की कुछ और होती इतना तो दावे के साथ कह सकतीं हूं इतना मारा -मारी, अहंकार के नाम या प्यार के नाम पर गुलामी नहींऔर ईमानदारी के नाम पर बेईमान ना होते ।
मैं तो ईश्वर राम से भी कहती हूं कि आपकी लीला में आपकीचुप्पी,मां सीता जंगल में रहने, धरती में समाने और नारी को विवशता का आलम्बन दिया हैं।
माँ सीता ने कहा जाते -जाते हे प्रभु ऐसी परिस्थिति कभी ना लाना किसी जन्म लीला अवतार में। मैं मेरा अनुभव जहां तक है मां सीता,मां का दर्द उस एक वचन ने संभाले रखा, मां उनको मां सीता को, छोड़ने के बाद भी जिसमें खरी उतरे।
वो रामजी के सत्य वचन मैं सदा एक पत्नी व्रत रहूंगा।
वो श्री राम जी बातें उन्ह दर्दनाक पल में उनका संबंल रहा।
वो नारायण थे ही,वो नर में आकर नारायण हो गये।
मर्यादा को उन्होंने धुमिल अवतार में भी नहीं होने दिया।
वो राम जो कभी निज हित, स्वार्थ के लिए मरा नहीं। सचमुच धन्य है रामायण महाकाव्य। मैं भी नारी में सचमुच उस ईश्वर राम जी से कहती हूं कि चेतना का वो उच्च (धर्म )तरंगबहाये I जिसमें सिर्फ हिंसा युद्ध और हिस्सेदारी बह जाए शेष जो बचे।वो प्रेम प्यार कर्मसार, इसकी राज प्रभु ही जाने।
लीलाधर अगर मानव मात्र खेल ही तो भी माने स्थिति पात्रता
विकट थी है और बिकट विकृति रूप और और असम्मान के शूल पर झूल रही हैं , पूरी तरह से ( मनुष्यता )स्त्री पुरुष दोनों।