मानवीय संवेदनाओं के कवि थे स्मृति शेष शचीन्द्र भटनागर जी.
मानवीय संवेदनाओं के कवि थे स्मृति शेष शचीन्द्र भटनागर जी.
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स्मृति शेष आदरणीय शचीन्द्र भटनागर जी से मेरी प्रथम भेंट मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 2018 को हुई थी I
जब विश्नोई धर्मशाला में राजभाषा हिन्दी प्रचार समिति के तत्वावधान में काव्य गोष्ठी थी, और उसी कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डा• राकेश चक्र के काव्य संग्रह ‘धार अपनी खुद बनाना’ का लोकार्पण भी था I
वह मंच पर थे I कार्यक्रम के अंत में उनका सूक्ष्म संबोधन सुना, जो अत्यंत धीर गंभीर व सहज उद्बोधन था, समयाभाव के कारण उन्होंने एक दो मुक्तक ही सुनाये थे I
कार्यक्रम समापन के पश्चात उनसे थोड़ा संवाद हुआ और पता चला कि वर्तमान में वह शांति कुंज हरिद्वार में रहते हैं I
उस दिन मैंने जो रचना सुनायी थी उसमें भी आध्यात्मिकता का पुट था जिसके लिये उन्होंने मेरी सराहना भी की थी I
तत्पश्चात उनसे भेंट तो नहीं हो सकी किंतु कोरोना काल में वह मुरादाबाद में, गौड़ ग्रेशियस कालोनी में अपने निवास पर आ गये थे, तथा विभिन्न संस्थाओं की आनलाइन गोष्ठिओं में उनसे संवाद होता रहता था I
उन्हीं गोष्ठियों से उनकी रचनाधर्मिता का परिचय मिलता गया I
उसी दौरान काव्य प्रवाह अनुगूँज ग्रुप में हम भी आनलाइन जीवंत काव्यपाठ का निरंतर आयोजन कर रहे थे , जिसके लिये मैंने उनसे आग्रह किया था और वह तैयार भी हो गये थे, किंतु कार्यक्रम से एक दिन पूर्व ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था और उनका जीवंत प्रसारण नहीं हो सका I
कोरोना का प्रभाव जनवरी फरवरी में कुछ कम हुआ तो हमने फरवरी 2021 में एक कवि सम्मेलन किया था, उसमें उनको भी निमंत्रित करने व सम्मानित करने का मन था किंतु जब कार्यक्रम की योजना ही बन रही थी कि अकस्मात 1 फरवरी 2021 को क्रूर काल ने उन्हें हमसे छीन लिया I
साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर उनकी कुछ रचनाएं पढ़ने को मिलीं, उन्हें पढ़कर ही ज्ञात हुआ कि वह मानवीय संवेदनाओं और विषमताओं को व्यक्त करने वाले कवि थे I सामाजिक आर्थिक असमानता, जीवन की दुरूह और विषम परिस्थितियों, राजनेताओं और संपन्न वर्ग की कुटिल शोषण करने वाली नीयत पर उनकी कलम खूब चली हैI
कुछ उद्धरण प्रस्तुत हैं:
1.
हर दिशा से, आज कुछ ऐसी हवाएं चल रही हैं
आदमी का आचरण बदला हुआ है
2.
आओ करें साधना
हमको सबसे पीछे खड़े व्यक्ति के
शब्दों को ताकत देनी है
3.
ऐसा बाग लगा है
जिसमें जगह जगह गिरगिट फैले हैं
छवि है बिल्कुल भोली भाली
बाहर से दिखते हैं खाली
किंतु कार में अशर्फियों से,
भरे कई भारी थैले हैं
4. गंगा स्वच्छता अभियान पर:
मेरी सुनो पुकार बोलती हूँ मैं गंगा माई
नजर उठाकर देखो मेरी क्या दुर्दशा बनाई
5. साहित्य सृजन की स्तरहीन स्थिति पर:
लेखनी अब विष उगलने में लगी है
कलाकृतियां भी विषैली हो रही हैं
6.अंधाधुंध शहरीकरण पर:
नगरों ने जब निगल लिए हैं हरे भरे जंगल
फिर कैसे हो मनुज सुखी, हो कैसे जन मंगल
7. वर्तमान की विषम सामाजिक असंतुलन की विषम परिस्थिति पर भी उन्होंने आह्वान किया है:
आज हम ले लें शपथ फिर संगठन की
यह समय अब शक्ति भारी चाहता है
है विरोधी आँधियों का वेग इतना
अब न कोई पग अकेला बढ़ सकेगा
हर तरफ फैली असुरता से यहाँ
एकाकी न कोई लड़ सकेगा
जीवन के एकाकी क्षणों की मनोदशा को भी उन्होंने निम्न पंक्तियों के माध्यम से सशक्त अभिव्यक्ति दी है:
अब इस तरतीब से लगे घर का
खालीपन सहा नहीं जाता
घर के हर कोने तक उग आया
बीहड़ वन सहा नहीं जाता
उनके लगभग 13 गीत, नवगीत, गज़ल व मुक्तक संग्रह, खंड काव्य व एक महाकाव्य प्रकाशित हुए हैं I
हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि साहित्यिक मुरादाबाद के इस आयोजन के माध्यम से हमें मुरादाबाद के इतने सशक्त रचनाकार का परिचय मिला I
इन्हीं शब्दों के साथ उनकी स्मृतियों को बारंबार नमन करता हूँ,और साहित्यिक मुरादाबाद के प्रशासक डा• मनोज रस्तोगी का बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ I
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद उ.प्र.