*मानवता*
(1)मानवता करती रुदन,टूटी मन की आस!
कलियुग के इस दौर में,गायब है विश्वास!!
(2)दानवता हावी हुई,मानवता पर आज!
करनी पर इंसान की,रब को आती लाज!!
(3)मानवता पिसने लगी,अब तो चारों ओर!
भारत माता रो रही,अवनी करती शोर!!
(4)मानवता छलनी हुई,दानव का सह वार!
अपना था माना जिसे,निकला वह गद्दार!!
(5)कलियुग के इंसान की,बड़ी अजब है रीत!
मानवता को छोड़ कर,करता मूरत प्रीत!!
(6)मानवता पर है किया,वीरों ने उपकार!
अपनी जां दे कर गये, रोशन ये संसार!!
(7)दया,प्रेम, समभाव है, मानवता का मूल!
झूठे धन के फेर में,हम सब जाते भूल!!
(8)मानवता का गुण नहीं, फिर कैसा इंसान!
पूजा पत्थर की करे, मान इसे भगवान!!
(9)मानवता लाती सदा,अच्छे शुद्ध विचार!
महापुरुष ही मानते,इस जग को परिवार!!
(10)मानवता के मर्म को,समझे जो इंसान!
नर सेवा ही मानता,अपना वो भगवान!!
धर्मेन्द्र अरोड़ा
“मुसाफ़िर पानीपती”
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