माधव लवकरे को बधिर दोस्त से ही मिली डिवाइस बनाने हेतु प्रेरणा
सभी पाठकों को मेरा प्रणाम ।
अभी हाल ही में दिल्ली के १७ साल के माधव लवकरे द्वारा ऐसी डिवाइस बधिरों के लिए बनाई गई है, जो आवाज को टेक्स्ट में बदलती है, जिसे बनाने हेतु खर्च मात्र २५००/- रूपए है ।
वो कहते है न कि बच्चों के दिमाग में कोई बात यदि बैठ गई और उन्होंने वह करने की ठानी तो वे उसे पूर्ण करके ही दिखाते हैं, बस यही करके दिखाया है दिल्ली के माधव ने । मैंने सोचा माधव की यह कहानी अपने लेख के माध्यम से आपके समक्ष साझा करूं, आशा है कि आप अवश्य ही प्रेरित होंगे ।
माधव को पूर्ण रूप से भरोसा है कि जो काम गुगल ग्लास नहीं कर सका, वह कार्य उसका इनोवेशन जरूर करेगा । संस्कृति स्कूल में माधव जब अध्ययनरत छात्र था तब उसका एक दोस्त सुन नहीं सकता था । उसे दूसरे छात्रों के साथ बातचीत में प्रतिदिन ही समस्या आती थी, इस कारण उसने स्कूल आना ही छोड़ दिया । इसी से प्रेरित होकर माधव ने ट्रांसक्राईब नामक एक स्मार्ट ग्लास बनाया है । जो लोग सुन नहीं सकते या कम सुनते हैं, उनके लिए यह ग्लास बातों को टेक्स्ट के रूप में दिखाता है ।
ट्रांसक्राईब को इसी साल नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम इग्नाइट अवार्ड से नवाजा गया था । माधव अब अच्छी किस्म के इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को एकत्रित कर ट्रांसक्राइब का नया डिज़ाइन बनाने की कोशिश में है ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ आसानी से मिल सके । वर्तमान में ट्रांसक्राइब का उपयोग पढ़ें- लिखे लोग ही कर सकते हैं, लेकिन सूचनाओं का आदान-प्रदान संकेतों के माध्यम से भी किया जा सकता है ।
माधव ने यह डिवाइस सस्ते माइक्रोचीप से बनाई है । इसे उपयोगकर्ता के स्मार्टफोन के साथ ब्लूटूथ के जरिए जोड़ा जाता है । गूगल के एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस -ए.पी.आई. के जरिए यह १३२ भाषाओं में आवाज को टेक्स्ट में परिवर्तित कर सकता है । परिवर्तित डेटा ब्लूटूथ के जरिए ग्लास पर डिस्प्ले होता है । यह डिवाइस किसी भी चश्मे की फ्रेम के साथ अटैच की जा सकती है, भले ही उसमें कोई भी पावर उपलब्ध हो ।
माधव इसी का प्रोटोटाईप बना रहा है वैसे ट्रांसक्राइब बनाने हेतु उसे करीब २५००/- का व्यय आया है । वह इससे मुनाफा बिल्कुल नहीं कमाना चाहता है । वह वर्तमान में इसी कोशिश में लगा हुआ है कि इस डिवाइस को बनाने और भविष्य में रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लायक पैसे मिल जाएं ताकि उसको और अधिक उपयोगी बनाने हेतु सहायता मिलेगी ।
नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने माधव के लिए ट्रांसक्राइब का पेटेंट कराया है । वह सरकार के लिए ऐसे ही प्रोडक्ट / उत्पाद बनाना चाहता है कि जिन्हें समस्त स्कूल, विश्वविद्यालय और दूसरे सार्वजनिक केंद्रों पर बड़ी संख्या में वितरित किया जा सके । माधव का कहना है कि वह अभी बहुत छोटा होने के कारण निवेशकों के पास जाने के लिए असमर्थ है । लोग क्राउडफंडिंग से ही उसकी सहायता कर रहे हैं । एक क्राउडफंडिंग साइट की सहायता से वह करीब ३ लाख रुपए जुटाना चाहता था । अब तक उसे २.५ लाख रुपए मिले हैं । वह अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट पर भी क्राउडफंडिंग के लिए जाने की कोशिश कर रहा है । स्टेटिस्टा के अनुसार भारत देश में क्राउडफंडिंग इंडस्ट्री अभी मात्र ८ करोड़ रुपए की है ।
फिर पाठकों पढ़ा आपने, कैसे माधव लवकरे ने अपने बधिर दोस्त से प्रेरित होकर यह डिवाइस बनाने में सफलता हासिल की । कोई भी काम कभी भी मुश्किल नहीं होता है और ना ही हमें समझना चाहिए । उसे अपने दोस्त से प्रेरणा मिली और उसने यह डिवाइस बधिरों की सहायता के लिए बनाई ताकि वे भी अध्ययन एवं अन्य सभी क्षेत्रों में पढ़ने-लिखने के कार्य आसान तरीके के माध्यम से बिना किसी समस्या के पूर्ण रूप से कर सकें ताकि वे भी किसी के ऊपर निर्भर न रहते हुए स्वतन्त्र होकर कार्य करने में सफल हो सके। हम भी सकारात्मक रूप से कह सकतें हैं कि माधव को इस नेक कार्य के लिए अवश्य ही श्रेय मिलेगा जो हमारे देश के लिए एक अनोखी मिसाल साबित होगी ।
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धन्यवाद आपका ।