मातृ दिवस
मातृ दिवस की बाँट रहे हैं,हम सब भले बधाई।
लेकिन घर के अधुनातन से ,बूढी माँ अकुलाई।
झुलस गई है त्वचा देह की, झुलस गई माथे की बिंदिया।
पश्चिम की कर्कश फूहडता, उडा रही आँखों की निंदिया।
भौतिकता की तृषा न समझे , किंचित पीर पराई।
मातृ———–(1)
बेटे सारे निकल चुके हैं, अपने अपने रोजगार पर।
लेकिन दो रोटी की खातिर, भटक रही माँ द्वार द्वार पर।
कोख फाड़कर ममता चीखे, कैसी यह प्रभुताई।
मातृ————(2)
तिनका तिनका बीन बीनकर, जिसने सबके भाग्य सँवारे।
उस माता की देख भाल हित , कतराते हैं बच्चे सारे।
टूटी खटिया , उखड़ी साँसें, पैरों फटी बिंवाई।
मातृ————(3)
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रचनाकार – करन सिंह परिहार
ग्राम-पोस्ट – पिण्डारन
जिला – बाँदा (उत्तर प्रदेश)
सम्पर्क – 9321832601