मातृभूमि
मातृ भूमि को करूं नमन , कितने हैं उपकार।
मां बनकर रखे शरण, दे अमूल्य उपहार।
गोद जिसकी खेलता ,बचपन सदा निर्दवंद।
उसकी सेवा में अर्पण करूं जीवन ये स्वच्छंद।
मातृभूमि देती हमे खाने को फल मेवे और अन्न।
शीतल नीर वहा नदी का मिटाए प्यास जन समंद।
पर्वत उपवन वृक्ष और नदियां सब हैं इसके ही अंग।
खनिज लवण अमूल्य रत्न सब इसकी हैं देन।
है सौभाग्य कि मातृ भूमि मेरी हैं भारत वर्ष।
गौरवगाथा और अतीत इसका देता सदा हैं हर्ष।
शहीदों की ये भूमि मेरी, वीरों से सदा रक्षित ।
धन्य हैं सभी सपूत इसके जो न सद्भावों से वंचित ।
कोटि नमन मेरी मातृ भूमि को और नमन वंदन।
इसके लिए करूं अर्पण सदा मैं ये निर्मल मन।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश