##### माता-पिता#####
उठाओ कलम अब, कलम चलाओ तुम।
चरणों में मात-पिता, नमन कराओ तुम।।
खोलो भाग्य द्वार अब, खोओ अवसर नही,
आओ ले आशीष ज्ञान चक्षु खोल जाओ तुम।।
खूब लिख जाओ अब, पिता-माता को चमन।
भाँति-भाँति के सुमन, चमन खिलाओ तुम।।
लिखो स्वर्ग चरणों में, ऐसा कहीं और नहीं।
बात समझाओ अब, सबको बताओ तुम ।।
नव माह कोख रखा , सींचा खुद तन खून।
पिया दूध माँ का जिस, कर्ज क्या चुकाओ तुम।।
दुख सारे हर लिया, विपदा आने ना दिया।
ईश रूपी पिता अब, कभी न सताओ तुम।।
खुश रहे बेटा मेरा, जग उजियारा रहे।
बाती बन खुद जले, अब न जलाओ तुम ।।
दिन रात जगे रहे, सपनों के तेरे लिए।
देके थपकी प्यार की, उनको सुलाओ तुम।।
प्यारे बेटे लल्ला राजा, हो गए सयान तुम।
बने बात ऐसा कुछ, अब कर जाओ तुम।
खान-पान बोलचाल, चलना सिखाया तुम्हे।
रीति नीति ज्ञान मान, सबको चलाओ तुम।।
खूब उपकार करो, सब दिल राज करो।
माता-पिता देश मान, सम्मान बढ़ाओ तुम।।
दुआ का असर यह, विघ्न हर जाए सब।
“जय” संग मात-पिता, दिल में बसाओ तुम।।
संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म.प्र.