माता पिता (शाम सुहानी रुत मस्तानी)
शाम सुहानी रुत मस्तानी, झूमूँ, गाऊँ ये मन है।
नए दौर में याद पुरानी, आये तो अभिनन्दन है।
हमने दिन के नखरे देखे, रातों को डरते देखा है।
धन के मद में जीने वाले, नातों को मरते देखा है।
देखी है मुस्कान फरेबी, मतलब से रोते देखा है।
सम्बन्धों की मैली चादर, अश्कों से धोते देखा है।
किन्तु परे निंदा स्तुति से, शुभाशीष के दाता हैं।
इनको पूजो इस धरती पर, माता पिता विधाता हैं।
इनका तो हर बोल दुआ है, सेवा ईश्वर अर्चन है।
निर्धन हैं वे दौलत वाले, जिन्हें न हासिल ये धन है।
शाम सुहानी रुत मस्तानी………….
सुख की खोज में दुनियाँ वाले, दुनियाँ भर के चक्कर काटें।
सब नातों से जमकर ऐंठे, बाहर तलबे जीभर चाटें।
हम भी जीवन पथ के राही, यहाँ धूप है छाँव नहीं है।
राहत की चाहत में भटके, मिलता कोई ठांव नहीं है।
जो थोड़ी सी छाँव मिली, वह अमर रहे यह हसरत है।
इस बगिया में इन पेड़ों की, सचमुच बहुत जरूरत है।
इनकी छाया जब तक सिर पर, खिला महकता जीवन है।
ये दुनियाँ पीतल की नगरी, प्यार तुम्हारा कुंदन है।
शाम सुहानी रुत मस्तानी……………….
संजय नारायण