माता-पिता के प्यार को, उनके भरोसे को सबसे पहले मान दीजिए
माता-पिता के प्यार को, उनके भरोसे को सबसे पहले मान दीजिए
हम माता-पिता की वज़ह से, उनके द्वारा ही इस दुनियां में आते हैं,उनकी नजरों से इस दुनियां को देखते हैं, समझते हैं
फिर बड़े होते होते हम उन आंखों से आगे की जिंदगी क्यों नहीं देखना चाहते? क्यों हम अपनी ही समझ का चश्मा लगा लेते हैं इन आंखों पर…..
आज मैं जिन्दगी की एक ऐसी सच्चाई को आपसे साझा करना चाहती हूं,जो मैंने महसूस की है….
पहले तो एक सवाल मैं आप सभी से करना चाहूंगी….
कि, क्या कभी ऐसा हुआ है कि, आपने अपने माता-पिता को कभी फोन किया हो और उन्होंने आपका फोन नहीं उठाया हो,या अगर वो फोन उस वक्त किसी वज़ह से ना उठा सके भी हों,तो अगले कुछ मिनटों में उन्होंने आपको दुबारा फोन न किया हो…..?
मुझे नहीं लगता दुनियां के कोई भी माता पिता अपनी औलाद के फोन को नजरंदाज करते होंगे।
और एक तरफ़ आज की युवा पीढ़ी है,हम सभी कभी ना कभी ये गलती जरूर कर देते हैं,माना की कयी लोग जानबूझकर ऐसा नहीं करते, परंतु कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें माता-पिता बिल्कुल ज़रूरी नहीं लगते….
क्या फर्क पड़ता है,जब अपने ज़रूरी काम से फ्री होंगे तब फोन कर लेंगे मां को….
या अभी मूड़ नहीं पापा के ज्ञान सुनने को,जब मन करेगा तब बात कर लेंगे….
क्या बात करें रोज़ रोज़ एक ही सवाल तो करती है मां कि, बेटा तू कैसा है, तूने खाना खाया कि, नहीं….
पापा रोज रोज़ वो ही अपने ज़माने का ज्ञान देते रहते हैं…
फ़ालतू बातें सुनने को वक्त नहीं है मां…फ्री होकर कोल करता हूं आपको
और उधर माता-पिता अपनी संतान पर आज भी उतना ही भरोसा रख कर , उसके फोन का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं…
रात को अगर कम्पनी के मैसेज से कभी भूले से मोबाइल की लाइट जल जाए,तो झट से उठ खड़ी हो जाती है मां कि, कहीं बेटी का, फ़ोन तो नहीं आ रहा….
माता-पिता के अंधे प्रेम का और क्या सबूत दूं कि, इतना होने के बाद भी,जब भी संतान फोन करके अपनी मजबूरी की झूठी दुहाई देती है, माता-पिता उस पर विश्वास करके खुद को ही ग़लत समझ माफ़ी मांगने लगते हैं अपने बच्चों से…..
बहुत ही दिल झकझोर देने वाली है ये सच्चाई…..
मैं सभी दोस्तों से यही विनती करती हूं कृपया अपने माता-पिता के प्यार को, उनके भरोसे को सबसे पहले मान दीजिए
एक बार उनकी जगह खुद को रखकर देखिए, मैं यकीन के साथ कहती हूं आपको ये अहसास जरूर होगा औलाद की ऐसी अनदेखी माता-पिता को जीते जी मारने जैसी है
वक्त रहते उनकी अहमियत समझिए, भगवान ना करे कि,जब तक आप समझें,तब तक आपकी परवाह में आने वाला फ़ोन का वो नंबर खामोश हो जाए….
दीपाली कालरा