*माता पिता और संतान के बीच घुटते-मरते रिश्ते*
माता पिता और संतान के बीच घुटते-मरते रिश्ते
अक्सर सोचती हूं वृद्ध माता पिता और बच्चों के बीच तालमेल क्यों नहीं बैठ पाता..क्यों बच्चे माता पिता को अपने हिसाब से कंट्रोल करने लगते हैं..या माता पिता ही साथ नहीं रहना चाहते..अपने बच्चों की स्थिति को समझना नहीं चाहते..रिटायर होने के बाद अकेलापन बहुत सताता है..बच्चों के पास समय नहीं होता या फिर यूं कहें कि बच्चे वृद्ध होते माता पिता के पास बैठना समय की बर्बादी समझते हैं..ठीक है वो हमें नहीं समझते लेकिन हम तो उन्हें समझ सकते हैं..क्या पैसा रिश्तो से बढ़कर है ? अगर हम घर में रिश्तो को आपस में समय नहीं दे सकते तो बेकार है ऐसी ज़िन्दगी..एक ही छत के नीचे अगर चूल्हा अलग अलग जलता है तो ऐसे संस्कार व्यर्थ हैं..कैसे रह लेते हैं लोग एक ही छत के नीचे घुटते हुए..मरते हुए..मौत से पहले ही मर जाना..क्या यही है ज़िन्दगी ? दूसरी ओर, क्या माता पिता को भी इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में बच्चों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए? बेकार का अहंकार सिर्फ़ रिश्तो में दरार ही पैदा करता है..इसके अलावा कुछ नहीं..कहीं पर बच्चे रिश्तो की अहमियत नहीं समझते और कहीं पर माता पिता अपने अहम् में घर में शान्ति नहीं होने देते..कुछ भी हो..रिश्ते तो मर ही रहे हैं..नतीज़ा..तनाव और अकेलापन…इस स्थिति से निकलने के लिये एक दूसरे की परिस्थितियों को समझना बहुत ज़रूरी है..बच्चों को चाहिए अपनी भागदौड़ वाली ज़िन्दगी में से कुछ समय अपने माता पिता के लिये भी निकालें..उनके पास बैठे..बात करें..अगर वे साथ नहीं रहना चाहते तो उनसे दिन में या जब भी समय मिले फोन पर हालचाल पूछा ही जा सकता है..वहीं माता पिता को भी समझना चाहिए बच्चों की भी अपनी निज़ी ज़िन्दगी है..बेवज़ह दखल न दें..रिश्तो में सांस लेने की ज़गह होनी चाहिए..नहीं तो दम घुटने लगता है..एक बात और.. पश्चिमी संस्कृति को अपनाकर हमारी युवा पीढ़ी भ्रमित हो रही है..गलत रास्ते पर जा रही है..इस संस्कृति की कुछ अच्छी बातें अपनाकर वही ” सादा जीवन उच्च विचार” अपनाना ही समाज में संतुलन बनाने के लिये अति आवश्यक है..अपनी ज़मीन से जुड़ा रहना बहुत ज़रूरी है.
©® अनुजा कौशिक