माता-पिता-38 वर्ष शादी के।
14 जून 1982,
मेरे माता-पिता परिणय सूत्र में बंधे, शादी एक संयोग है और इन दोनों की शादी इस बात का जीवंत उदाहरण है। मेरी माता जी सन् 1977 या 1978 से ही अध्यापन क्षेत्र में सक्रिय रहीं, उनकी शादी एक ऐसे परिवार में हुई जहाँ महिलाओं का नौकरी करना तो दूर हंसना-बोलना भी ग़लत समझा जाता था। यहां से शुरू हुआ शुरूआती समस्याओं का दौर, नाना जी का पूर्ण समर्थन था मेरी माता जी को कि चाहे जो भी हो लेकिन नौकरी नहीं छूटनी चाहिए।
पिता जी थोड़ी असमंजस की स्थिति में थे कि अपने परिवार का साथ दें या पत्नी की नौकरी का, अंततः उन्होंने माता जी का साथ देने का निर्णय लिया,अहम बात ये थी की पिता जी का शैक्षिक परिवेश माता जी की तुलना में ज़्यादा मज़बूत नहीं था। बस फिर शुरू हुआ संघर्ष का एक लंबा दौर,पिता जी तो इस तरह माता जी के सहयोग में आगे आए कि उन्होंने सिद्ध कर दिया कि एक महिला के जीवन में उसके पिता के बाद पति का ही सबसे अहम योगदान होता है।मेरा जन्म 22 नवंबर 1984 में हुआ और मेरे होश संभालते तक मैने अक्सर ही ऐसा सुना कि इन दोनों की शादी का आपस में कोई मेल नहीं, हालांकि समय-चक्र अपनी गति से चल रहा था और मुझे बहुत अच्छे से समझ में आने लगा कि माता जी अध्यापन जगत में जो प्रगति कर रहीं थी उसमें मेरे पिता जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
पुरुष प्रधानता की ओछी मानसिकता से भारतीय समाज आज भी नहीं उबर पाया है तो उस दौर में तो स्थिति और भी जटिल थी, लेकिन पिता जी ने इन धारणाओं को किनारे करते हुए एक ऐसी मिसाल पेश की जिसमे पुरुष प्रधानता जैसी कोई बात नहीं थी, इसके उलट उन्होंने हर एक कदम पर माता जी का हौसला बढ़ाया, कभी किन्हीं कारणों से अगर माता जी को आने में देर हो जाती थी फिर भी कभी पिता जी ने कोई बेबुनियाद प्रश्न या बात नहीं की।अपने घर का माहौल देख कर मुझे पुरुष प्रधानता या महिला-पुरुष में भेदभाव जैसी बातें एक मिथ्या लगती है।
कोई अनोखी बात तो नहीं है पर हाँ दोनों का जीवन काफी संघर्षशील रहा इस दौरान अपने दोनों बच्चों को कभी किसी बात की कोई कमी उन दोनों ने नहीं होने दी, दोनों में समानता बस यही है कि दोनों ही बहुत सादे और सरल स्वभाव के रहे, साईकिल से लेकर चौपहिये तक के सफर में उनके सुलझे स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया। अब तो माता जी सेवानिवृत हो चुकी हैं, मैने अपने 36 साल के जीवन काल में उन दोनों को ज़्यादातर छोटी-छोटी बातों पर बहस ही करते देखा, दुनिया की कोई भी संतान अपने माता-पिता के संबंधों की व्याख्या शब्दों में नहीं कर सकती और मै भी इस से अछूता नहीं, देखते ही देखते आज 38 वर्ष पूरे हो गए और साल दर साल आप दोनों का संबंध और मज़बूत होता चला गया और ये सफर अभी भी बदस्तूर जारी है।
मेरी दुआ है ये हमेशा ऐसे ही चलता रहे, जीवन के इस पड़ाव पर ये कहा जा सकता है कि बतौर जीवन साथी आप दोनों से बेहतर एक दूसरे के लिए कोई और साथी हो ही नहीं सकता था,और अंत में बस इतना ही :
यूं ही हमेशा बनी रहे ये, बहस और प्रेम की गिरह,
आप दोनों को बहुत मुबारक हो,आपकी शादी की सालगिरह।
-अंबर श्रीवास्तव