माता का बलिदान
ख़त्म रसोई में हुआ , खाना जितनी बार !
माँ ने फांका कर लिया, झूठी मार डकार !!
जीते जी इंसान को, कहाँ मिले विश्राम !
सोलह आने सत्य है, जीवन है संग्राम !!
महके उनका इत्र बिन,साहित्यिक परिवेश !
आती है किरदार से, जिनके महक रमेश !!
रमेश शर्मा