माणुष
💐💐💐कुण्डलिया निवेदन💐💐💐
माणष मोती चावतो , ढूँढ़ै नित नित सींप ।
सींपी जीवण पाळती ,माणुष पाळै खींप ।।
माणुष पाळै खींप , सींप को जीव बिसारै
पेट जीव को फाड़ ,आपणो स्वार्थ सिधावै
कह भूधर कविराय,माणष बण्यो कुमाणष
पग पग करतो पाप, चावतो मोती माणष ।।
भवानी सिंह ‘भूधर’
बड़नगर, जयपुर