*माटी कहे कुम्हार से*
सोंधी सोंधी खुशबू से
माटी कैसे महक रही
दीपक बने को है तैयार
खुशी में देखो उछल रहीl
माटी बोले कुम्हार से
जल्दी-जल्दी मेरे दिए बनाओ
आने वाले हैं श्री राम हमारे
14 वर्ष के वनवास से।
सोंधी सोंधी खुशबू से
माटी कैसे महक रही.
जल्दी-जल्दी मुझे पकाओ
घर-घर मुझको जाना है
बच्चों के चंचल मन को
फिर से बहलाना है।
सोंधी सोंधी खुशबू से
माटी कैसे महक रही…
मैं तो कच्ची माटी हूँ
जैसे चाहे वैसे ढल जाऊँगी
संस्कारों से भर जाउंगी
चरण स्पर्श कर श्री राम के
मर्यादा पुरुषोत्तम की तरह
उच्च जीवन चाहूँगी।
सोंधी -सोंधी खुशबू से
माटी कैसे महक रही..
माटी मुस्काए और कहे
मेरे रूप अनेक
मैं गणेश मै कार्य सिद्धि विनायक
मैं विनाश की मूरत
मैं शिव मैं पार्वती दया की मूरत
धर मैं लक्ष्मी का रूप
सबको बांटू खजाना खूब।
सोंधी-सोंधी खुशबू से
माटी कैसे महक रही..
बन मुरलीधर सिखलाऊ
प्रेम की रीत
जिसने पूजा मुझको
उससे मेरा सांझा रिश्ता
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
जो चाहे मेरी माटी से बना ले।
बनकर दिया मुझको जगमगाना है
भारत के अंधकार को दूर भगाना है
रोशनी बन बच्चों के
जीवन को जगमगाना है
आदिकाल से अब तक
मेरा जीवन सबको महकाता आया है।
सोंधी सोंधी खुशबू से
माटी कैसे महक रही…
हरमिंदर कौर अमरोहा (उत्तर प्रदेश)