माघी दोहे ….
लुढ़का पारा शून्य पर, कुहर-शीत की धूम।
सूरज भी आया मनो, सर्द हिमालय चूम।।
पाला पड़ा दिमाग पर, हाथ-पाँव सब सुन्न।
बिस्तर में दुबके हुए, पड़े सभी हैं टुन्न।।
माघ मास में शीत से, काँपे थरथर गात।
सरवर जम सब हिम हुए, ऐंठ रहा जलजात।।
माघ मास पाला पड़ा, बढ़ता अनुदिन शैत्य।
धरा अनवरत खोजती, छुपे कहाँ आदित्य ?।।
जेठ मास में जेठ से, उगल रहे थे आग।
माघ मास में दुम दबा, कहाँ छुपे तुम भाग ?।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मनके मेरे मन के” से