मां
मां चाहे किसी की भी हो
चाहे निर्धन की या अमीर की
मां तो बस मां होती है।
घर में रहनेवाली मां खुश रहेगी तो पत्थर के देवालय में रहनेवाली मां अपने आप खुश हो जाएगी।
उस इंसान से बातें करना छोड़ देना चाहिए जो अपनी मां-बाप का इज्जत नही करता हो।
जो अपने मां-बाप इज्जत नहीं करता,
वह दूसरों की इज्जत कभी नहीं कर सकता है।
अगर वह आपकी इज्जत करता है तो सिर्फ स्वार्थ वश करता है।
अक्सर मां-बाप दोषी तब हो जाते है
जब बच्चे अपने जिंदगी के फैसले स्वयं लेने लगते है।
लुटा के उम्र की दौलत वो खाली हाथ हो जाते।
उन्हें ही बदनसीब समझ के वो अकेले छोड़ जाते है।
किसी ने सच कहा है –
आज हमारी कल तुम्हारी
देखों भैया पारा-पारी।