मां समझ न पाई
अचानक …..बेटे को मां की याद आ गई । मां को लेने गांव पहुंच गया । एक छोटे-से कच्चे मकान में मां अकेली …। हां अकेली ही रहती थी । बेटा मां के पास पहुंच कर बोला – मां तेरी बहुत याद आ रही थी । चल कुछ दिन मेरे साथ रहना । मां का स्नेह… कोई प्रश्न नहीं , कोई तर्क नहीं । बेटे के साथ शहर आ गई । शहर में बेटे के आलीशान बंगले में नौकर – चाकर सब हैं । तीन दिन पोते पोतियों के साथ हंसते , तस्वीरें खिंचवाते कब बीत गए पता ही नहीं चला । हां….एक दिन जब सब उसे बधाई दे रहे थे , चरण स्पर्श कर रहे थे , बहुत सारी तस्वीरें खींची जा रही थी , तब उसने अपने पोते से पूछा भी था – अरे आज ये सब क्या हो रहा है । मेरे साथ इतनी फोटो क्यों खींच रहे हो । दादी आप नहीं जानती , आज मातृदिवस है । गांव की पली – बढ़ी वह भला ये सब क्या जाने । अचानक…. चार दिन बाद ही बेटा बोला – मां , चल , तुझे गांव छोड़ देता हूं । फिर मुझे बहुत दिनों तक समय नहीं मिलेगा ।
बेचारी बिना कुछ कहे , गांव के लिए वापस चल दी । लेकिन कार में बैठे – बैठे रास्ते भर सोचती रही । अचानक…. बेटे का उसे लेने आना और फिर अचानक ही छोड़ने जाना । वह कुछ समझ न सकी ।
अशोक सोनी ।
भिलाई ।