मां मेरे सिर पर झीना सा दुपट्टा दे दो ,
मां मेरे सिर पर झीना सा दुपट्टा दे दो ,
दे दो वह सीख जो मुझे निडर बना सके ,
जो भी देना है वो ज्ञान इकठ्ठा दे दो,
अगर मीठी बनी रही तो खा जायेंगे लोग ,
चीनी ओर शक्कर की समझकर ,
इसलिए मुझे कुछ हुनर तीखा और खट्टा दे दो ।
नहीं सुरक्षित बेटियां आज इस समाज में ,
काट दी जाती हैं सब्जियों की तरह ,
इसलिए खुद की सुरक्षा के लिए ,
मेरे हाथ में छुरी , तमंचा और कट्टा दे दो ।
नहीं चाहिए जेवरों का वजन इस देह पर ,
देह रहेगी तो सज संवर भी जायेगी ,
मगर खुद का अस्तित्व बनाने के लिए ,
हाथ में कलम और पीठ पर बस्ता दे दो ।
बेटी हूं खुद को बचाना मुश्किल है यहां ,
इसलिए साहस और आत्मविश्वास का गट्ठा दे दो।
मंजू सागर
गाजियाबाद