*”मां चंद्रघंटा”*
“मां चंद्रघंटा”
सुंदर सौम्य दिव्य स्वरूप लिए हुए,
तृतीय रूप मे ईश्वरीय रूप चली आई हो।
सिंह सवारी लगती है प्यारी सी,
माथे मुकुट चंद्र शोभित लगती हो।
दशो दिशाओं में गूंज उठी घंट नाद,
अस्त्र शास्त्र धारण महिषासुर मर्दानी हो।
स्वर्णिम आभा काया रूप मनोहर ,
अदभुत छबि त्रिलोकी जग जननी हो।
अंतर्मन से पूजा अर्चना करते भक्तजन,
सुख समृद्धि सौभाग्य दे जाती हो।
स्वर्ण मुकुट सिर पे गुड़हल की माला पहने ,
शांत चित्त मन आलौकिक कर जाती हो।
लाल चुनर गोटे वाली पांव महावर सजे,
ताप संताप विपत्ति हर जाती हो।
सारे ब्रम्हांड को वरदान देने वाली,
भक्तो की खाली झोली भर जाती हो।
दुःख कष्ट दूर करती भय मुक्त क्लेश हरती,
दुष्टों का संहार कर चंद्रघंटा देवी कहलाती हो।
शशिकला व्यास शिल्पी ✍️🙏🌹🚩