मां के किसी कोने में आज भी बचपन खेलता हैयाद आती है गुल्ली डं
मन के किसी कोने में आज भी बचपन खेलता है।
याद आती है गुल्ली डंडा वह कांच के कन्चे और वह लुकाछिपी का खेल खेलता है ।।
खुद से भारी छड़ी से पतंग लूटता है इस काम में उसका कर भी फूटता है।।
फिर उसको मां की याद आती है वहां जाकर उसका रोना छुटता हैं ।।
अब कुछ लोग# बुद्धिमान# हैं वह हमें कमतर समझते हैं ।।
और एक बुद्धिमानी का चोगा पहनेअपने आपको बहुत ऊंचा समझते हैं।।