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22 Feb 2024 · 1 min read

मां की अभिलाषा

माँ आनन्द का वटवृक्ष है,
माँ की अभिलाषा दक्ष है।
माँ परिवार की मूल होती,
माँ बालक सर्वोपरि पक्ष है।।

माँ संतान का होवै मूल है,
माँ घर के बाग का फूल है।
उल्लास से भरी हर्षभंडार,
माँ तोतली समझै समूल है।।

माँ संतान की होती परम है,
संतान जन्म सर्वोच्च कर्म है।
एक देह में दूजी देह बनती,
संतान जन्म देना माने धर्म है।।

संतान ही माँ होती आशा है,
माँ की सर्वोच्च अभिलाषा है।
माँ माफ करै संतान हर भूल,
सुखी संतान माँ अभिलाषा है।।

अपनत्व ही माँ की पहचान है,
अभिलाषा बच्चे माँ की जान है।
माँ चाहती भेंट में देदें धराकाश,
अभिलाषा खुशी लेती मान है।।

माँ हँस दे तो हो जाता सवेरा,
माँ रोये तो हो जाता अँधेरा।
सांझ-सवेरे माँ की गोद प्यारी,
बचपन में होता माँ ही बसेरा।।

पृथ्वीसिंह’ माँ अभिलाषा हम,
जीवन में है माँ की आशा हम।
माँ अभिलाषा बच्चे जग जीते,
माँ की अभिलाषा समृद्ध हम।।

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