माँ
जीवन के उलझे डोरों को जब तुम ना समेट पाओ,
तब डोर के एक छोर को मां को थमा देना।
दुख के उठते बवंडर को जब तुम ना समेट पाओ,
तब लवों के एक सिकन को मां को सुना देना।
जब हो तुम चिरचिंतन में, एक कदम ना आगे बढ़ पाओ,
तब हाथ के एक ऊंगली को, मां को थमा देना।