माँ
शीत में धूप है,
ममता की रूप है।
सावन की फुहार है,
शीतल बयार है।
पतझड़ में बसन्त है,
आदि है अंत है।
यार है,
प्यार है,
दुलार है,
मनुहार है,
उपकार है,
पूरा संसार है।
माँ नाम है,
माँ दाम है,
माँ धाम है,
माँ राम है,
माँ सांस है
माँ खास है,
माँ आश है,विश्वास है।
ये जब तलक जहांन है।
मां सबसे महान है।
शिशुपन में दूध पिलाया,
हमने लात चलाया ।
सेवा सत्कार नित,
इसी में है परम् हित।
सदा अपनाना जी,
न कोई बहाना जी।
जिसने दिल दुखाया है,
दोंनो जहां गंवाया है।
बीबी दिल की रानी है,
पर मां की नहीं सानी है।
इतने उपकार हैं,
नहीं पारावार है।
यदि ऋण से पाना मुक्ति है,
केवल सेवा एक युक्ति है।
वह इतनी उपकारी है,
थोड़े में ही आभारी है।
सांसो के छोर तक,
देती दुवाएं भोर तक।
माँ क्या गुणगान करें,
अपने से कुछ अर्पण करें।
करेगा तो हर्षायेगा ,
वरना बाद में पछतायेगा।
बुढापा से किसकी यारी है,
एक दिन सब की बारी है।
जो नहीं करते वे अभागे हैं,
दाई की थाली माई के आगे है।
सतीश शर्मा सृजन