माँ
माँ कभी विदा नहीं होती….
माँ जगत से कभी विदा नहीं होती
संतति के कण कण में रची होती है माँ
हमारी नाड़ीयों के रक्त में प्रवाहित होती माँ
हमारी नवचेतना प्रज्ञा स्मृति में समाहित होती है माँ
देहरी आँगन द्वार दीवार में ढली होती है माँ
ऐनक, कुर्सी, मेज, कलम, सब में बसी होती है माँ
तीज त्यौहार प्रथा परम्पराओं में होती है माँ
भूल चूक होते ही तस्वीरों में प्रगट हो जाती है माँ
हौंसलों उम्मीदों और सहारों में भी छिपी होती है माँ
हमारे विचारों क्रियाओं विरासतों में भी विचरण करती है माँ
बोल चाल भाषा शैली हाव भाव सबमें होती है माँ
ज्येष्ठ भ्राता के उत्तरदायित्वों में यदि पिता विराजित होते हैं
तो भाभी के चेहरे के पीछे भी छिपी होती है माँ
आकाश से नीचे आते आशीर्वादों में होती है माँ
तो धरती से ऊपर जाती श्रद्धाओं में होती है माँ
“माँ की पुण्यतिथि पर सादर नमन”
सुनील पुष्करणा