माँ
कोख से ही माँ की मिलता साँस को विस्तार है,
और सबके जिस्म का बनता वहीं आकार है।।
वो न होती यदि धरा पर, कैसे फिर आता कोई,
इस जगत में आने का बस माँ ही इक आधार है।।
हर किसी की माँ सँवारे ज़िन्दगी उसकी बहुत,
माँ के बिन बच्चे की समझो ज़िन्दगी बेकार है।।
बोझ काँधों पर उठाया माँ ने जिसका उम्र भर,
एक दिन बेटा वही उसको समझता भार है।।
हाल उनसे पूछिए, है पास जिनके माँ नहीं,
बेबसी किस्मत में उनकी, वक़्त पालनहार है।।
आपको लाखों मिलेंगे चाहने वाले मगर,
माँ के जैसा इस जहाँ में किसका पावन प्यार है।।
माँ का साया सर पे था तो दूर थी हर इक बला,
“अश्क” उसके जाने से अब हर सफ़र दुश्वार है।।
© अशोक कुमार “अश्क चिरैयाकोटी”
दि०:25/06/2022