माँ
माँ की ममता का इस जग में, मोल नहीं है भाई।
बेटा चाहे जैसा भी हो, माई होती माई।
लाज शर्म सब त्याग तुझे वह, इस जग में लाती है।
पहले तेरी क्षुधा मिटाए, फिर वह कुछ खाती है।
त्याग दया ममता की मूरत, माँ भगवान धरा पर-
तू यदि दीपक है इस जग में, माँ तेरी बाती है।
खुद हो खाली पेट भले ही, अस्तन तुझे पिलाई।
बेटा चाहे जैसा भी हो, माई होती माई।
भींगे विस्तर की सब बातें, याद करो बचपन की।
सुध विसराई तेरे खातिर, माता अपने तन की।
भूल गये वह काली रातें, सतत तुम्हारा रोना-
तुम क्या समझोगे तब क्या थी, हालत माँ के मन की।
रात रात भर ठपकी देकर, जिसने तुझे सुलाई।
बेटा चाहे जैसा भी हो, माई होती माई।
ताप हुआ था जिस दिन तुझको, माँ इक पल ना सोई।
सीने से चिपकाए तुझको, अँखिया झरझर रोई।
सारी जुगत लगा दी माँ ने, देव दवाई कर के-
जबतक तू हँसकर ना देखा, माँ थी खोई खोई।
स्नेह कमल कर सर पर रख के, सारे रोग मिटाई।
बेटा चाहे जैसा भी हो, माई होती माई।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य