*माँ सरस्वती सत्यधाम हैं*
माँ सरस्वती सत्यधाम हैं
बनी चंद्रमा शिव मस्तक पर,आसन उच्च महान।
चमक रहा है तेज तुम्हारा,परम दिव्यतम मान।।
साथ तुम्हारा पाकर मानव,बन जाता विद्वान।
बना मनीषी खींच रहा है,सारे जग का ध्यान।।
अति उत्साहित करती सबको,भरती सबमें जोश।
बुद्धि मदिर का पान करे जो,हो जाये मदहोश।।
खुश हो जाती नतमस्तक पर,देती अपना राज।
भव्य अदाएं दिखला कर माँ,करती सारा काज।।
बैठी हो सुन्दर पुस्तक पर,तुम्हीं अक्षराकार।
पावन लेखन वाचन उत्तम,तुम अमृत रसधार।।
मधुर भाव में चाल मस्त है,परम अलौकिक प्यार।
खुला हुआ है सकल धरा पर,विद्या का दरबार।।
विनयशीलता का वर दो प्रिय, हम बन जाये हंस।
रग रग में नित देव वास हो,मारा जाये कंस।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।