*माँ सरस्वती (चौपाई)*
माँ सरस्वती (चौपाई)
चली लेखनी कृपा हुई जब।
मात समायी हैं रग रग जब।।
बिन माता के भाव न उठता।
कभी न कविता में मन लगता।।
कर पर बैठी वे ही लिखती।
मोहक शब्द बनी वे दिखती।।
लगती पंक्ति दिव्य मनभावन।
कागज पर कविता शिव पावन।।
माँ कहती हैं कवि बन जाओ।
ज्ञान गंग में सदा नहाओ।।
डूबो गहरा खोजो मोती।
सदा जगाओ जगती सोती।।
आभूषण बन सत्य चमकना।
वीणा लेकर सहज थिरकना।।
अंधकार को सदा मिटाना।
सूर्य प्रभा बन ज्योति जलाना।।