माँ लोखी
शरद ‘कोजागरी’ या ‘उजागर’ पूर्णिमा में होती है लक्खी पूजा। मूलत: बंगाल में लक्खी पूजा का प्रचलन है और मनिहारी क्षेत्र भी बंगाली संस्कृति से जुड़ी है ! लक्खी में ‘ख’ बांग्ला टोन है, ‘क्ष’ के लिए ! बांग्ला में लक्खी को लोखी भी कहते हैं !
कहा जाता है, लक्ष्मी-गणेश पूजन से इतर बिल्कुल सामान्य लोगों ने ‘लक्खी’ शब्द प्रचलित कर इसे जनसाधारण के लिए प्रचार-प्रसार किया, जैसे- संस्कृत के ‘रामायण’ को सरल, सहज और सुगम बनाने को लेकर अवधी व खड़ी बोली में ‘रामचरित मानस’ की रचना हुई !
माँ लक्खी को समृद्धि की प्रतीक देवी मानी गयी है ! आज हमारे यहाँ मूर्त्तिकारों व कुम्हारों के यहाँ लक्खी प्रतिमा क्रय करने को लेकर काफी भीड़ है । यह पूजा आश्विन पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा में होती है, जिसे कोजागर व कोजागरी या उजागर व उजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं !