माँ मैथिली आओर विश्वक प्राण मैथिली — रामइकबाल सिंह ‘राकेश’
मिथिला प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण प्रान्त है। इमनी लावण्यमयी मजुंल मूर्ति, मधुरिमा से भरी हुई सरस बेला और उन्मादिनी भावनाएँ किसके हृदय को नहीं गुदगुदा देती ? यहाँ के बसन्तकालीन सुहावने समय, बाँगो के भुरमुट में छिपी गिलहरियों के प्रेमालाप, सुरञ्जित सुन्दर पुष्प, सुचिनित पशु पक्षी और कोमल पत्तियों के स्पन्दन अपने इर्द गिर्द एक उत्सुक्तापूर्ण रहस्यमय आकर्षण पैदा कर देते हैं। कहीं ऊँचे -ऊचेँ बादलों को आंखमिचौली, कहीं झहर झहर करती हुई बल- खाती नदियों की अठखेलियाँ, वहीं धान से हरे भरे लहलहाते खेतों की क्यारियां – मतलब यह कि यहाँ की जमीन का चप्पा चप्पा और आसमान का गोशा गोशा काव्य की सुरभि से सुरमित्त हो रहा है और संगीत की निर्मल निर्मारिणी सदा अभिराम गति में टलमल करती हुई दौर रही है।
यहां की भाषा मैथिली है, जिसकी लिपि देवनागरी लिपि से भिन्न है, और इससे बंगला लिपि का भी भास दृष्टिगोवर होता है। बिहार की प्रादेशिक भाषाएँ है- मैथिली मगही और भोजपुरी। मैथिली चम्पारण, दरंभगा पूर्वी मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया और मुजफ्फरपुर,देवघर,बाँका,सहरसा,सुपौल,
मधेपुरा,कटिहार ,दुमका और बंगाल असाम यूपी उड़ीसा के कुछ जिलों आदि में बोली जाती है। लेकिन दरभंगा,मधुबनी,सहरसा,
सुपौल जिले के गाँवों में ही यह अपने शुद्ध रूप में प्रचलित ‘है। मैथिली और मगही एक दूसरे के अधिक निकट है, और इन दोनों प्रादेशिक भाषाओं के बोलनेवालों के रीति रिवाज और रहन-सहन में भी कोई विशेष अन्तर नहीं। उच्चारण के लिहाज से भी मैथिली और मगही भोजपुरी की अपेक्षा एक दूसरे से बहुत अधिक मिलती-जुलती है। मैथिली में स्वर वर्ण ‘अ’ का उच्चारण स्पष्ट और मधुर होता है। भोजपुरी में स्वर वर्ण का उच्चारण (मध्यभारत में प्रचलित भाषाओं की तरह) थोड़ा ठेठीपन में है। इन दोनों भाषाओं में मैथिली और भोजपुरी का यह अन्तर इतना स्पष्ट है कि इनके जुड़े जुड़े लिवाशों को पहचानने मे देर नहीं होती है । सज्ञाओं के शाब्दिक रूपकरण की दृष्टि से भोजपुरी में सम्बन्ध-कारक का सरल
रूप नहीं होता है । मैथिली और मगही में मध्यम पुरुष का सर्वनाम जो अक्सर बोल-चाल में इस्तेमाल होता है, ‘अपने’ है , और भोजपुरी में ‘रऊरे’। मैथिली में Substantive क्रिया ‘छई’ और ‘अछी’ है परंतु आम बोलचाल में हैं और हय,हबे प्रयोग किया जाता है परंतु मगही में ‘है’, और भोजपुरी में ‘बाटे’, ‘बारी’, और ‘हवे’। अन्य भारती भाषाओं की तरह क्रिया विशेषण मे Substantive क्रिया जोड़ कर वर्त्तमान काल बनाने में ये तीनों प्रादेशिक भाषाएँ एक-सी हैं। मगहीँ का वर्त्तमान काल ‘देखा है’ भी एक मिक्रत रखता है। भोजपुरी मे ‘देखा है’ के बदले ‘देखे ला’ इस्तेमाल होता है। मैथिली और मगही में क्रिया के भिन्न भित्र रूपान्तर-धातुरूप सरल नहीं हैं। उनके पढन और समझने में पेचीदगी पैदा होती है। लेकिन हिन्दी की तरह भोजपुरी के धातुरूप साफ-सुथरे और बाअनर है। इनके पढ़ने और समझने में दिमाग में पसीना नहीं आता, और न इनके शब्द मन में अलग अलग तम्बीर पैदा करत है। इन तीनो प्रादेशिक भाषाओं में और भी कितने अन्तर है। लेकिन ऊपर जो भेद दिखलाये गये हैं वे ज्यादा उपयोगी और उल्लेखनीय हैं। मगही और मैथिली अधिक समय तक एक ही भाषा मानी जाती थी!
मैथिल ग्राम-साहित्य-सागर के विस्तीर्ण अन्तम्तल में न मालूम कितने अनमोल सुन्दर हीरे यंत्र-तंत्र बिखरे पड़े हैं, जो एकल के सूंत्र में पिरोये जाने पर विश्व साहित्य के भंडार को पूर्ण बना सकते हैं। मैथिल ग्रामीण कवियों ने साहित्य के विभित्र पहलुओ, जैसे-नाटिकाएं, विनोद-पद, कहानियाँ, पहेलियाँ, कहावतें आदि सभी को समान-रूप से स्म्पर्श किया है। वे अपने परिमार्जित और सयत गीतों के रचयिता ही नहीं, बल्कि अनेक नूतन छन्दों और तालों के उत्पादक भी है। हो, कहीं-कहीं एक ही छन्द बहुरुपिये-सा रूप बदल कर जुदा-जुदा लिवासों में प्रक्ट हुआ है। उनमें कुछ ऐसे हैं, जो तेज रेती के समान कठोरतम इस्पात को भी काट सकते हैं, कुछ ऐसे हैं, जो पतझर से जीर्ण-शीर्ण आत्मा का वासन्तिक निर्माण करते हैं, और कुछ ऐसे हैं जो फूल की कोमल कली की तरह वनदेवी की गोद में मचल रहे हैं।
लोक-साहित्य के आकाश में गीतों के विद्दाम अहर्निश उड़ते फिरते हैं। जनवरी से दिसम्बर तक बारहों महीने गीतों की बहार रहती है। भारत तथा विश्व के वर्तमान समय की गीतों की जननी है यह माँ मैथिली!
क्रमाशः—-2
लेखक
महाकवि रामइकबाल सिंह ‘राकेश’