माँ-बाप
? मुक्तक ?
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तमन्ना के भंवर में हर कोई गोते लगाता है।
कोई आँसू बहाता है तो कोई मुस्कुराता है।
पहाड़ों-सा मिले सम्बल किनारा तेज धारा में।
जो सर पे हाथ हो माँ-बाप का बिगड़ी बनाता है।
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तमन्ना की तमन्ना है तमन्ना पूर्ण हों प्रभु जी।
मेरे सब कष्ट हरने को तुरत अवतीर्ण हों प्रभु जी।
विराजो मन के मन्दिर में मधुर मनमीत मनमोहन।
परिष्कृत चित्त होवे तेज से सम्पूर्ण हों प्रभु जी।
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तमन्ना है यही मेरी करूँ माँ-बाप की सेवा।
सयाने लोग कहते हैं यही सबसे बड़ी मेवा।
यही मंदिर यही मस्जिद यही गिरजा औ गुरुद्वारा।
चरण आशीष मिलता तेज को खुश हो रहे देवा।
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तेज 17/4/17✍