माँ-बाप की नज़र में, ज्ञान ही है सार,
माँ-बाप की नज़र में, ज्ञान ही है सार,
भावनाओं की परवाह, है बिलकुल बेकार।
कक्षा में रैंक ऊंची, होनी चाहिए ज़रूर,
बच्चे का मन, हो सकता है, टूटकर चूर।
ज्ञान-बुद्धि की दौड़ में, भूल जाते हैं,
बच्चे का मन भी, होता है, तन-मन से थकन।
भावनाओं का विकास, होता है धीमा,
बच्चा बन जाता है, अकेला, डरपोक, सीमा।
सामाजिक कौशल, नहीं होते विकसित,
बच्चा बन जाता है, अंदर ही अंदर, क्षुब्ध।
माँ-बाप को समझना होगा,
ज्ञान-बुद्धि के साथ, भावनाओं का भी होगा।
बच्चे का मन भी, होगा खुशहाल,
बन जाएगा बच्चा, जीवन में, सफल और कमाल।